संविधान के विकास में सुप्रीम कोर्ट की भूमिका
- ***एक तरफ यह संविधान का संरक्षक, अंतिम व्याख्याकर्ता, मौलिक अधिकारों का रक्षक ,केन्द्र-राज्य विवादों मे एक मात्र मध्यस्थ है I
- वहीँ यह संविधान के विकास मे भी भूमिका निभाता रहा हैI
- इसने माना है कि निरंतर संवैधानिक विकास होना चाहिए ताकि समाज के हित संवर्धित हो
- न्यायिक पुनरीक्षण शक्ति के कारण यह संवैधानिक विकास मे सहायता करता है
- सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विकास यह है कि भारत मे संविधान सर्वोच्च है इसने संविधान के मूल ढाँचे का अदभुत सिद्धांत दिया है जिसके चलते संविधान काफी सुरक्षित हो गया है I
- इसे मनमाने ढंग से बदला नही जा सकता है
- इसने मौलिक अधिकारों का विस्तार भी किया है
- इसने अनु 356 के दुरूपयोग को भी रोका है
- भारत का उच्चतम न्यायालय इस उक्ति का पालन करता है कि संविधान खुद नहीं बोलता है यह अपनी वाणी न्यायपालिका के माध्यम से बोलता है
- ***एक तरफ यह संविधान का संरक्षक, अंतिम व्याख्याकर्ता, मौलिक अधिकारों का रक्षक ,केन्द्र-राज्य विवादों मे एक मात्र मध्यस्थ है I
- वहीँ यह संविधान के विकास मे भी भूमिका निभाता रहा हैI
- इसने माना है कि निरंतर संवैधानिक विकास होना चाहिए ताकि समाज के हित संवर्धित हो
- न्यायिक पुनरीक्षण शक्ति के कारण यह संवैधानिक विकास मे सहायता करता है
- सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विकास यह है कि भारत मे संविधान सर्वोच्च है इसने संविधान के मूल ढाँचे का अदभुत सिद्धांत दिया है जिसके चलते संविधान काफी सुरक्षित हो गया है I
- इसे मनमाने ढंग से बदला नही जा सकता है
- इसने मौलिक अधिकारों का विस्तार भी किया है
- इसने अनु 356 के दुरूपयोग को भी रोका है
- भारत का उच्चतम न्यायालय इस उक्ति का पालन करता है कि संविधान खुद नहीं बोलता है यह अपनी वाणी न्यायपालिका के माध्यम से बोलता है
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